सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

कविता- माँ

माँ 

नमस्कार दोस्तों आज मै  आप लोगो से अपने द्वारा लिखित कविता माँ साझा कर रही हूँ  | यहाँ कविता मैंने  बचपन में लिखा था  जब  शायद  मैं  8वी  क्लास में थी  | मुझे बचपन से ही कविता लिखने का शोक रहा है  तो मैने  सोचा क्यों न आप सभी से साझा करू ,मुझे अपनी माँ  जैसी है उसकी हिसाब से कविता लिखा है शायद आप लोगो की माँ भी मेरी माँ जैसी हो बहुत प्यारी और  हमें जान से भी ज्यादा चाहने वाली हो  तो प्रियो मित्रो आप मेरे दुवारा लिखित कविता पढ़े और मुझे बताये कैसा लगा आप को आप को भी अपना बचपन याद आया की नहीं वैसे हम कितने भी बड़े क्यों न हो जाये माँ का प्यार कभी नहीं बदलता यही सच्चाई है |हमे  भी अपनी माँ से उतना ही प्यार करना चाहिए जितना वो हम से करती है लेकिन माँ जैसा  कोई  नहीं हो सकता | माँ धरती पर भगवान का रूप है क्युकि जितना माँ करती है हमारे लिए और कोई नहीं कर सकता हमारे दुखी होने पर माँ हमसे ज्यादा दुखी होती है और हमारे खुश होने पर वो हमसे ज्यादा खुश  होती है |आज मै भी एक माँ हूँ इसलिए जानती हु जब हम बहुत छोटे होते है उस समय वो कितना समझौता करती है हर कुछ से सिर्फ अपने बच्चे के लिए, बच्चा  जब तक सो न जाये उसे नींद नहीं आती ,जब तक उसका बच्चा खा न ले वो नहीं खाती चाहे उसे भूख ही क्यों न लगी हो ,ठण्ड में यहाँ देखने के लिए बार -बार जगती है कही उसका बचा रजाई से उघर तो नई गया और हमेशा पहले अपने बच्चे के लिए अच्छा से अच्छा कपडे खरीदती है और अपने लिए चाहे कैसे भी खरीद ले उसे बस पाने बच्चे की खुशी दिखती है ,ऐसी बहुत सारी बातें है माँ के समझौते के जिसे शब्दों में बता पाना सम्भव नहीं हैं | | बस में यही कहना चाहती हूँ  अपनी माँ का ख्याल रखे उनसे खुद से ज्यादा प्यार करे माँ बस हमसे प्यार चाहती है और कुछ नहीं तो कृपिया अपनी माँ की इज्जत करे ,और पढ़े मेरा कविता माँ 





माँ होती है सबसे प्यारी | 
दुनियाँ मे सबसे न्यारी || 
माँ दुःख हमारे लेती 
खुशियाँ अपनी हमें देती 
                                                  हमें सुलाती सूखे पर ,
                                                  खुद गीले पर सोती || 
                                                  माँ हमारे लिए लोरी गाती 
                                                 रात भर जागती हमारे लिये 
                                                तकलीफ न हमे होने देती || 
माँ होती सबसे प्यारी दुनियाँ मे 
    सबसे न्यारी 
माँ के आँचल सा सुख 
होता न और कही ,,
माँ पुराने पहन के कपड़े 
हमें नये कपड़े पहनाती || 
                                                       हमारे खुशियों के खातिर 
                                                      माँ कुछ भी कर जाती 
                                                     खा के माँ के हाथों का खाना 
                                                  सुख की अनुभूति होती || 


खुशियाँ हमेशा माँ को देंगे 
दुःख कभी न होने देंगे | 
दुनियाँ की सारी खुशियाँ 
माँ के चरणों में हम रख देंगे || 
                                                    तो मुझे विस्वास है आप को मेरा कविता जरूर अच्छा लगा होगा 
धन्यवाद, बहुत- बहुत आभार  


                                                           compose by 
                                                                               Alka chaudhary 



टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

प्रागैतिहासिक काल-पुरापाषाण काल, मध्य पाषाण काल, नवपाषाण काल

प्रागैतिहासिक ल         पुरापाषाण काल   संभवतया 500000 वर्ष पूर्व द्वितीय हिम  के प्रारंभ काल में  भारत में मानव का अस्तित्व प्रारंभ हुआ। कुछ विद्वानों के अनुसार मानव का अस्तित्व सर्वप्रथम दक्षिण भारत में हुआ जहां सेेे वह उत्तर-पश्चिमी पंजाब गया। परंतु कुछ अन्य इतिहासका अनुसार  मानव अस्तित्व का प्रारंभ सर्वप्रथम सिंधु और झेलम नदी केेे उत्तर पश्चिम केेे पंजाब प्रदेश और जम्मूू में हुआ । तत्पश्चा मानव इस युग में गंगा यमुना के दोआब को छोड़कर राजपूतानाा, गुजरात , बंगाल ,बिहार,उड़ीसा और संपूर्ण दक्षिण भारत में फैल गया। भारत के इन विभिन्न स्थानों पर इस युग के मानव द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाले हथियार प्राप्त हुए हैं। अनुमानतय  यह युग ईसा पूर्व  25000 वर्ष पूर्व तक माना गया है।  पुरापाषाण काल को भी अब तीन भागों में विभक्त किया गया है १- पूर्व पुरापाषाण काल-पूर्व पुरापाषाण काल  के अवशेष उत्तर पश्चिम के सोहन क्षेत्र (सोहन सिंधु नदी की एक सहायक नदी थी) मैं प्राप्त हुए हैं। इस काल के अवशेष नर्मदा नदी तथा उसकी सहायक नदियों की घाटियों में प्राय आधे दर्जन स्थानों में प्राप्त हुए ह

भारत में वर्ण व्यवस्था का इतिहास

वर्ण व्यवस्था का इतिहास  उत्तर वैदिक काल में कई सामाजिक परिवर्तन हुए। समाज में विभाजन तीखा हो चला। वर्ण व्यवस्था सुदृढ़ हुई।  आश्रम व्यवस्था शुरू हुई। संयुक्त परिवार विघटित होने लगे, स्त्रियों की स्थिति में गिरावट आई। शिक्षा का विशिष्टीकरण हुआ। वर्ण व्यवस्था ऋग्वैदिक काल की वर्ग व्यवस्था वर्ण व्यवस्था में परिवर्तित हो गई। कुछ प्राचीन ग्रंथों में वर्ण व्यवस्था को ईश्वरीय माना गया है। ऋग्वेद के पुरुष सूक्त के अनुसार विराट पुरुष के मुख से ब्राह्मण, बाहुओं क्षत्रिय, जंघाओं से वैश्य और पैरों से शूद्र हुए। बाद में विराट पुरुष का स्थान ब्रह्मा ने ले लिया, परंतु इन वर्णों की उत्पत्ति का सिद्धांत वही रहा‌। कुछ वर्ण का अर्थ रंग से लेते हैं। इस आधार पर तो प्रारंभ में केवल दो ही वर्ण थे-े एक गोरे आर्यों का और दूसरा काले अनार्यों का। 2 फिर 4 वर्ण  कैसे बने वर्ण का अर्थ वरण करना या चुनना भी है। इस अर्थ के आधार पर कहा गया है कि जिस व्यक्ति ने जो धंधा चुन लिया उसके अनुसार उसका वर्ण निर्धारित हो गया। यही मत उचित प्रतीत होता है। प्राचीन दर्शन तथा धर्म ग्रंथों में अनगिनत बार उल्

दुबले पतले बच्चे को मोटा कर वजन बढ़ाने के तरीके

दोस्तों अगर आपके घर में भी कोई छोटा बच्चा है और उसका वजन कम है और आप चाहते हैं कि उसका वजन सही हो जाए और वह मोटा हो जाए तो उसके लिए मैंने यहां पर कुछ तरीके बताए हैं कुछ घरेलू नुस्खे बताएं जिसे अपनाने के बाद मुझे विश्वास है कि आपको फर्क जरूर नजर आएगा। आपका बच्चे का वजन जरूर बढ़ेगा। मैं यहां पर आपको 3 तरीके बताऊंगी, जिसके बाद आपका बच्चा मोटा हो जाएगा उसका वजन भी बढ़ जाएगा। दोस्तों जो पहला तरीका में बताऊंगी वह आपको मैं आहार के बारे में बताऊंगी कि आप अपने बच्चों को ऐसा क्या खिलाए जिससे कि उनका वजन बढ़ जाए। दूसरा तरीका मैं आपको कुछ घरेलू नुस्खे बताऊंगी। और तीसरा तरीका मैं आपको कुछ टिप्स दूंगी क्योंकि हम बहुत बार कुछ ऐसी गलतियां कर देते हैं जिसकी वजह से हमारे बच्चे अच्छे से ग्रोथ नहीं कर पाते। तो चलिए शुरू करते हैं। बच्चों का वजन बढ़ाने के लिए बच्चों को ये खाने दें। दोस्तों बच्चों को ऐसा खाने दें जिसमें कि कार्बोहाइड्रेट बहुत अधिक मात्रा में हो क्योंकि कार्बोहाइड्रेट से बच्चों का वजन बहुत तेजी से बढ़ता है। हमें बच्चों को ऐसे आहार देना चाहिए जिस में फैट की मात्रा अधिक हो जि