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नर हो न निराश करो मन को

                      नर हो न निराश करो मन को 

    

  कुछ काम करो कुछ काम करो 
  जग में रह कर कुछ काम करो 
  यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो 
  समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो 
  कुछ तो उपयुक्त करो तन को 
   न  निराश करो मन को   | 
                                                                   
                                                           सँभलो की सुयोग न जाए चला 
                                                           कब व्यर्थ सदुपाय भला ?
                                                            समझों जग को न निरा सपना 
                                                           पथ आप प्रशस्त करो अपना 
                                                           अखिलेश्वर हैं अवलंबन को 
                                                           नर हो न निराश करो मन को || 

निज गौरव का नित ज्ञान रहे 
"हम भी कुछ हैं " यह ध्यान रहे 
सब जाए अभी,पर मान रहे 
मरने पर गुंजित गान रहे 
कुछ हो ,न तजो निज साधन को 
नर हो न निराश करो मन को            
                                                             प्रभु ने तुमको कर दान किए 
                                                            सब वांछित वस्तु -विधान किए 
                                                            तुम प्राप्त करो उनको न अहो 
                                                           फिर है किसका यह दोष कहो ?
                                                          समझो न अलभ्य किसी धन को 
                                                         नर हो ,न निराश करो मन को || 

किस गौरव के तुम योग नहीं ?
कब कौन तुम्हें सुख भोग्य नहीं 
जन हो तुम भी जगदीश्वर के 
सब है जिसके अपने घर के 
फिर दुर्लभ क्या उसके जन को ?
नर हो न निराश करो मन को || 
                                                                  "  मैथलीशरण गुप्त "                          
                                              
                                                        

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