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दुबले पतले बच्चे को मोटा कर वजन बढ़ाने के तरीके

दोस्तों अगर आपके घर में भी कोई छोटा बच्चा है और उसका वजन कम है और आप चाहते हैं कि उसका वजन सही हो जाए और वह मोटा हो जाए तो उसके लिए मैंने यहां पर कुछ तरीके बताए हैं कुछ घरेलू नुस्खे बताएं जिसे अपनाने के बाद मुझे विश्वास है कि आपको फर्क जरूर नजर आएगा। आपका बच्चे का वजन जरूर बढ़ेगा। मैं यहां पर आपको 3 तरीके बताऊंगी, जिसके बाद आपका बच्चा मोटा हो जाएगा उसका वजन भी बढ़ जाएगा। दोस्तों जो पहला तरीका में बताऊंगी वह आपको मैं आहार के बारे में बताऊंगी कि आप अपने बच्चों को ऐसा क्या खिलाए जिससे कि उनका वजन बढ़ जाए। दूसरा तरीका मैं आपको कुछ घरेलू नुस्खे बताऊंगी। और तीसरा तरीका मैं आपको कुछ टिप्स दूंगी क्योंकि हम बहुत बार कुछ ऐसी गलतियां कर देते हैं जिसकी वजह से हमारे बच्चे अच्छे से ग्रोथ नहीं कर पाते। तो चलिए शुरू करते हैं। बच्चों का वजन बढ़ाने के लिए बच्चों को ये खाने दें। दोस्तों बच्चों को ऐसा खाने दें जिसमें कि कार्बोहाइड्रेट बहुत अधिक मात्रा में हो क्योंकि कार्बोहाइड्रेट से बच्चों का वजन बहुत तेजी से बढ़ता है। हमें बच्चों को ऐसे आहार देना चाहिए जिस में फैट की मात्रा अधिक हो जि
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भारत में वर्ण व्यवस्था का इतिहास

वर्ण व्यवस्था का इतिहास  उत्तर वैदिक काल में कई सामाजिक परिवर्तन हुए। समाज में विभाजन तीखा हो चला। वर्ण व्यवस्था सुदृढ़ हुई।  आश्रम व्यवस्था शुरू हुई। संयुक्त परिवार विघटित होने लगे, स्त्रियों की स्थिति में गिरावट आई। शिक्षा का विशिष्टीकरण हुआ। वर्ण व्यवस्था ऋग्वैदिक काल की वर्ग व्यवस्था वर्ण व्यवस्था में परिवर्तित हो गई। कुछ प्राचीन ग्रंथों में वर्ण व्यवस्था को ईश्वरीय माना गया है। ऋग्वेद के पुरुष सूक्त के अनुसार विराट पुरुष के मुख से ब्राह्मण, बाहुओं क्षत्रिय, जंघाओं से वैश्य और पैरों से शूद्र हुए। बाद में विराट पुरुष का स्थान ब्रह्मा ने ले लिया, परंतु इन वर्णों की उत्पत्ति का सिद्धांत वही रहा‌। कुछ वर्ण का अर्थ रंग से लेते हैं। इस आधार पर तो प्रारंभ में केवल दो ही वर्ण थे-े एक गोरे आर्यों का और दूसरा काले अनार्यों का। 2 फिर 4 वर्ण  कैसे बने वर्ण का अर्थ वरण करना या चुनना भी है। इस अर्थ के आधार पर कहा गया है कि जिस व्यक्ति ने जो धंधा चुन लिया उसके अनुसार उसका वर्ण निर्धारित हो गया। यही मत उचित प्रतीत होता है। प्राचीन दर्शन तथा धर्म ग्रंथों में अनगिनत बार उल्

भगवान शिव के वाहन नंदी की उत्पत्ति की कथा

नंदी जी उत्पत्ति की कथा पुराणों में उल्लेख मिलता है कि शिलाद मुनि के ब्रह्मचारी हो जाने के कारण वंश समाप्त होता देख उनके पूर्वजों ने उनसे अपनी चिंता व्यक्त की शिलाद मुनि निरंतर योग तप आदि मैं व्यस्त रहने के कारण गृहस्थ आश्रम नहीं अपनाना चाहते थे। अतः उन्होंने संतान की कामना से इंद्र देव को तप से प्रसन्न कर जन्म और मृत्यु से हीन पुत्र का वरदान मांगा। इंद्र ने इस में असमर्थता प्रकट की तथा भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कहा। तब शिलाद मुनि ने कठोर तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया और उनके ही सामान दिव्य और मृत्यु हीन पुत्र की मांग की। अतः भगवान शिव ने स्वयं उनके पुत्र के रूप में प्रकट होने का वरदान दिया। अतः एक दिन भूमि जोतते समय शीलाद को एक बालक मिला। शिलाद ने उसका नाम नंदी रखा। उसको बड़ा होते देख भगवान शंकर ने मित्र और वरुण नाम के दो मुनि शिलाद के आश्रम में भेजें। जिन्होंने नंदी को देखकर भविष्यवाणी की की नंदी अल्पायु है। नंदी को जब यह ज्ञात हुआ तो वह महादेव की आराधना से मृत्यु को जीतने के लिए वन में चला गया। वन में उसने शिव का ध्यान आरंभ किया। भगवान शिव नंदी के तप से प्रसन्न ह

हिंदी कहानी-बुढापे की गलती

बुढ़ापे की गलती शाम की सैर के लिए निकले हुए न्यायाधीश के सलाहकार मोहन ने बिजली के एक खंभे का सहारा ले कर एक ठंडी सांस ली | एक सप्ताह पहले जब वह शाम की सैर से वापस आ रहा था तो ठीक उसी जगह उसकी पुरानी नौकरानी ने उसे रोक लिया था ,और धमकाते हुए कहा था  "ठहर जा पापी। मैं भी तुझे ऐसा पाठ पढ़ाऊंगी की तुम भोली भाली लड़कियों को खराब करना भूल जाएगा। मैं बच्चा तेरे दरवाजे पर छोड़ जाऊंगी, तुझ पर मुकदमा चलाऊंगी, और तेरी पत्नी को भी सब कुछ बता दूंगी। यही नहीं.......''और इस के साथ ही नौकरानी ने कहा कि तुम बैंक में उसके नाम 500000 रुपए  जमा कर दे। अब फिर मोहन को 1 सप्ताह पहले की यह घटना याद आ गई। उसने एक ठंडी सांस ली, और मन ही मन अपने आप को एक बार फिर उस क्षणिक वासना के लिए धिक्कारा, जिसके लिए अब उसे इतनी चिंता और परेशानी का सामना करना पड़ रहा था। मोहन जब से से वापस अपनी कोठी पर पहुंचा दो ठीक 10:00 बजे रहे थे। चांद का एक छोटा टुकड़ा बादलों की ओट से झांक रहा था। परेशानी के कारण वह अपने आपको थका हुआ अनुभव कर रहा था इसीलिए दरवाजे के बाहर की सीढ़ियों पर आराम करने के लिए बैठ गया। गली में

भारतीय नव वर्ष-विक्रम संवत्, शंक संवत्, हिजरी संवत, पोंगल, गुड़ी पड़वा इत्यादि

हमारा नया साल दोस्तों 1 जनवरी से प्रारंभ होने वाले वार्षिक कैलेंडर को हम सभी जानते हैं हम इसे ईसवी सन के नाम से जानते हैं जिसका संबंध ईसाई जगत व ईसा मसीह से है। इसे रोम के सम्राट जूलियस सीजर द्वारा ईशा के नाम पर प्रचलन में लाया गया। भारत में ईसवी सन का प्रचलन अंग्रेजों शासकों ने 1752 में किया। 1752 से पहले भारत में वर्ष की शुरुआत 25 मार्च से होती थी, लेकिन 18वी शताब्दी से इसकी शुरुआत 1 जनवरी से होने लगी। हलाकि स्वतंत्र भारत में अधिकारिक रूप से ईसवी सन के साथ विक्रम संवत और शक संवत का इस्तेमाल भी होता है। आइए जानते हैं देश में प्रचलित ऐसे संवत के बारे में। विक्रम संवत विक्रम संवत की शुरुआत राजा विक्रमादित्य ने 57 ईसा पूर्व में की थी। विक्रमादित्य ने शकों के आक्रमण से मुक्ति दिलाई थी उसकी विजय स्मृति इसकी शुरुआत हुई। कहा जाता है कि राजा विक्रमादित्य ने अपनी प्रजा का ऋण खुद चुका कर इसकी शुरुआत की थी। पौराणिक कथा के अनुसार, चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना आरंभ की थी, इसलिए हिंदू इस तिथि को नव वर्ष का आरंभ मानते हैं। स्तिथि से ही चैत्र नवरात्र भी शुरू

विश्व की प्रसिद्ध कहानी-नेकलेस

नेकलेस   श्रीमती मैटिल्डा लौइसल सुंदर और महत्वाकांक्षी महिलाओं में से थी,  जिन्हें विधाता भूल से क्लर्कों के परिवार में जन्म दे देता है। वह शान के साथ रहना चाहती थी, अफसरों के सामान उसे ऐश्वर्य से प्रेम था। वह अपनी गरीबी से दुखी रहती थी। एक बार उसे और उसके पति को शिक्षा विभाग की मंत्री के यहां होने वाली पार्टी के लिए निमंत्रण मिला। लेकिन इस निमंत्रण को पाकर मैं मैटिल्डा का दुख और भी बढ़ गया। अमीरों की पार्टी में जाने के लिए उसके पास उत्तम वस्त्र नहीं थे पति ने कोरी कोरी करके बचाए हुए अपने 400 फ्रेंक खर्च करके उसके लिए अच्छे वस्त्र बनवा दिए। लेकिन एक अड़चन और थी उसके पास कोई आभूषण नहीं था। इसकी भी एक तरकीब निकल आई वह अपनी स्कूल की सहपाठी अमीर श्रीमती फोरस्टियर से हीरो का एक नेकलेस मांग लाई। उस पार्टी में सबसे अधिक सुन्दर  वह ही लग रही थी बड़े बड़े अफसरों की पत्नियों को उससे डाह होने लगी। हर पुरुष उसका परिचय प्राप्त करना चाहता था। वे अत्यधिक उत्साह से सारी रात नाचती रही। सुबह अपने पति के साथ लौटी तो उसका अभिमान बढ़ा हुआ था। लौटते समय सर्दी से बचने के लिए जो कोर्ट वह अपने लिए लाई थ

प्रागैतिहासिक काल-पुरापाषाण काल, मध्य पाषाण काल, नवपाषाण काल

प्रागैतिहासिक ल         पुरापाषाण काल   संभवतया 500000 वर्ष पूर्व द्वितीय हिम  के प्रारंभ काल में  भारत में मानव का अस्तित्व प्रारंभ हुआ। कुछ विद्वानों के अनुसार मानव का अस्तित्व सर्वप्रथम दक्षिण भारत में हुआ जहां सेेे वह उत्तर-पश्चिमी पंजाब गया। परंतु कुछ अन्य इतिहासका अनुसार  मानव अस्तित्व का प्रारंभ सर्वप्रथम सिंधु और झेलम नदी केेे उत्तर पश्चिम केेे पंजाब प्रदेश और जम्मूू में हुआ । तत्पश्चा मानव इस युग में गंगा यमुना के दोआब को छोड़कर राजपूतानाा, गुजरात , बंगाल ,बिहार,उड़ीसा और संपूर्ण दक्षिण भारत में फैल गया। भारत के इन विभिन्न स्थानों पर इस युग के मानव द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाले हथियार प्राप्त हुए हैं। अनुमानतय  यह युग ईसा पूर्व  25000 वर्ष पूर्व तक माना गया है।  पुरापाषाण काल को भी अब तीन भागों में विभक्त किया गया है १- पूर्व पुरापाषाण काल-पूर्व पुरापाषाण काल  के अवशेष उत्तर पश्चिम के सोहन क्षेत्र (सोहन सिंधु नदी की एक सहायक नदी थी) मैं प्राप्त हुए हैं। इस काल के अवशेष नर्मदा नदी तथा उसकी सहायक नदियों की घाटियों में प्राय आधे दर्जन स्थानों में प्राप्त हुए ह