बुढ़ापे की गलती
शाम की सैर के लिए निकले हुए न्यायाधीश के सलाहकार मोहन ने बिजली के एक खंभे का सहारा ले कर एक ठंडी सांस ली | एक सप्ताह पहले जब वह शाम की सैर से वापस आ रहा था तो ठीक उसी जगह उसकी पुरानी नौकरानी ने उसे रोक लिया था ,और धमकाते हुए कहा था "ठहर जा पापी। मैं भी तुझे ऐसा पाठ पढ़ाऊंगी की तुम भोली भाली लड़कियों को खराब करना भूल जाएगा। मैं बच्चा तेरे दरवाजे पर छोड़ जाऊंगी, तुझ पर मुकदमा चलाऊंगी, और तेरी पत्नी को भी सब कुछ बता दूंगी। यही नहीं.......''और इस के साथ ही नौकरानी ने कहा कि तुम बैंक में उसके नाम 500000 रुपए जमा कर दे।
अब फिर मोहन को 1 सप्ताह पहले की यह घटना याद आ गई। उसने एक ठंडी सांस ली, और मन ही मन अपने आप को एक बार फिर उस क्षणिक वासना के लिए धिक्कारा, जिसके लिए अब उसे इतनी चिंता और परेशानी का सामना करना पड़ रहा था।
मोहन जब से से वापस अपनी कोठी पर पहुंचा दो ठीक 10:00 बजे रहे थे। चांद का एक छोटा टुकड़ा बादलों की ओट से झांक रहा था। परेशानी के कारण वह अपने आपको थका हुआ अनुभव कर रहा था इसीलिए दरवाजे के बाहर की सीढ़ियों पर आराम करने के लिए बैठ गया। गली में और कोठियों के आसपास कोई भी दिखाई नहीं दे रहा था। गर्मियां बिताने के लिए आए हुए बूढ़े अब तक सो गए थे या सोने की तैयारी में थी। नौजवान अभी तक पहाड़ियों में घूम रहे थे।
सिगरेट जलाने के विचार से माचिस के लिए उसने अपने दोनों जेबों को टटोला तो उसकी दाहिनी कोहनी किसी कोमल वस्तु से टकराई। इधर निगाह घुमाते ही उसका चेहरा आतंक से सिकुड़ गया मानो उसने अपनी और बढ़ा हुआ कोई जहरीला सांप देख लिया हो। दरवाजे के बिल्कुल बाहर एक बंडल पड़ा हुआ था। मोहन ने उसमें अपना हाथ डाला तो कोई गिलगिली और सजीव चीज मालूम पड़ी। वह घबरा कर खड़ा हो गया और चारों ओर ऐसे देखने लगा मानो कोई कैदी अपने वार्डनों की निगाह से बच कर भाग निकलना चाहता हो।
आखिर में बच्चा छोड़ ही गई, अपने दांत भींच कर, मुठिया तानकर वह किचकिचया" यह पड़ा है मेरा पाप"हे भगवान।
भय, क्रोध और शर्म से वह सुन्न हो गया,,,, अब वह क्या करें? अगर उसकी पत्नी को मालूम हो गया तो है क्या कहेगी? न्यायालय मैं उसके सहयोगी क्या कहेंगे? न्यायाधीश भी उसकी पसलियों में अपनी उंगली घुसा कर हंसेगा और कहेगा:"बधाई है! तुम्हारी दाढ़ी सफेद हो गई तो क्या, दिल तो अभी जवान है! मोहन तुम तो पूरे घाघ हो!"
गर्मियों में छुट्टियां बिताने आए हुए सभी लोगों को इस बात का पता चल जाएगा। शरीफ घरानों के किवार उसके लिए बंद हो जाएंगे। ऐसी घटनाओं के समाचार अखबार वाले भी बड़ी मुस्तैदी से छाप देते हैं। बेचारे मोहन के नाम पर सारा समाज थू थू करेगा।
कोठी के बीच वाली खिड़की खुली थी। खाने की कमरे से उसकी पत्नी के खाना परोसने की आहट आ रही थी। सुरेश कोठी के पास वाले ही चौक में गिटार पर एक दर्द भरा गीत बजा रहा था। बच्चा किसी भी छन जा कर रोना शुरु कर देगा और सारा भेद खुल जाएगा। मोहन ने सोचा कि उसे अभी कुछ करना चाहिए।
जल्दी जल्दी वह बड़बड़ाया इसी वक्त किसी के देखने से पहले मैं इसे यहां से उठाकर ले जाऊंगा और किसी के दरवाजे के बाहर छोड़ आऊंगा। मोहन ने बच्चा अपने हाथ में उठाया और आहिस्ता आहिस्ता बिना किसी तरह की आहट की गली में निकल आया।
अजीब मुसीबत है, लापरवाही का नाटक करने की कोशिश करता हुआ मैं सोच रहा था, न्यायाधीश का सलाहकार गली में एक बच्चे को हाथों में उठाए! खुदा खैर करे! अगर कोई मुझे इस तरह देख ले और सारी बात भांप जाए तो,,,, इसे इसी दरवाजे के बाहर क्यों ना रख दूं,,,, नहीं ठहरो खिड़कियां खुली है शायद कोई देख रहा हो। कहां रखूं? आह, ठीक! अब समझ में आ गया मैं इसे व्यापारी धर्मेंद्र के घर के बाहर रखूंगा. व्यापारी धनी होते हैं और दिल की अच्छी हो सकता है वह इस बच्चे को पाकर मन ही मन खुश हो और इसे पाल ले।
मोहन ने आखिरकार बच्चे को धर्मेंद्र के घर के बाहर छोड़ने का निश्चय कर ही लिया, हालांकि धर्मेंद्र का मकान शहर के दूसरे नुक्कड़ पर नदी की तरफ था।
रास्ते में वह सोचता जा रहा था कहीं यह रोना मचलना शुरू न कर दे अजीब मुसीबत है। और मुझे देखो एक बच्चे को मैं इस तरह उठाए लिए जा रहा हूं जैसे हैंडबैग हो। हूं! बच्चा, जीवित औरों की तरह ही जिसकी भावनाएं हैं...... अगर सौभाग्य से धर्मेंद्र इसे गोदी ले ले तब तो इसकी भाग्य जाग जाएंगे, कुछ ना कुछ बन कर रहेगा..... हो सकता है यह प्रोफेसर बन जाए या कोई सेनापति या फिर कोई बड़ा लेखक..... कुछ भी हो सकता है। अब तो मैं इसे अपनी बगल में थैले की तरह दबोचे हुए चल रहा हूं, और 30-40 साल बाद हो सकता है इसके सामने बैठने की हिम्मत भी मुझे ना हो सके,,,,।
एक तंग और सुनसान गली में, जहां अंधेरों में दोनों तरफ लगे हुए नींबू के ऊंचे ऊंचे पेड़ और भी काले लग रहे थे मोहन को लगा की वह एक बहुत ही बुरा और निर्दय काम करने जा रहे हैं।
यह कितनी नीचता है! उसने सोचा, इससे ज्यादा निष्काम की कल्पना नहीं की जा सकती.... आखिर क्यों हम इस बच्चे को दर-दर की ठोकरें खिला रहे हैं? इस ने जन्म लिया है तो इसमें उसका कोई कसूर नहीं है. इसमें हमारा कुछ नहीं बिगाड़ रहा हम कितने दुष्ट हैं... हमारा तो थोड़ी सी देर का मजा हो जाता है। और भोले भाले बच्चे को सजा भुगतनी पड़ती है। इतनी निर्दयता कसूर कसूर मैंने किया है और मैं ही इसे सजा दे रहा हूं। अगर मैं इसे धर्मेंद्र के घर के बाहर छोड़ दूं तो वह इसे अनाथालय में भिजवा देगा। वहां अजनबियों के बीच तरह-तरह की मुसीबते सह कर यह पलेगा-ना प्यार, ना लाड़, ना दुलार.... और फिर यह किसी मोची के यहां काम सीखने के लिए लगा दिया जाएगा। यह शराब पिएगा भद्दी भद्दी गालियां देगा, भूखो मरेगा मोची, मेरा न्यायाधीश के सलाहकार का ऊंचे खानदान का बच्चा और मोची......! मेरे अपने शरीर का टुकड़ा......!
अब तक मोहन नींबू के घने पेडों वाली गली से बाहर आ गया था। चांदनी में आकर उसने बच्चे की कपड़े को थोड़ा सा हटाया और बच्चे को देखने लगा।
सोया हुआ है, मोहन बड़बड़ाया, शैतान, अपने बाप की तरह तेरी भी लंबी सी नाक है,,,, क्या आराम से सोया है लाटसाहब इतना भी नहीं पता की इनका बाप इन्हें देख रहा है। मेरे बच्चे यह नाटक है जीवन का नाटक। मुझे माफ कर देना, बच्चे तुम्हारी तकदीर में यही था।
मोहन की आंखें डबडबा आई और गले में कुछ अटका। उसने बच्चे को एक बार फिर से अच्छी तरह लपेटा और अपनी बगल में दबा लिया। धर्मेंद्र की हवेली तक रास्ते में तरह तरह के सामाजिक प्रश्न उसके दिमाग में घूमते रहे और उसकी आत्मा उसे धिक्कारती रही।
अगर मैं शरीफ और ईमानदार आदमी हूं तो मुझे चाहिए कि मैं इस बच्चे को लेकर अपनी पत्नी के पास जाओ और घुटनों के बल झुककर उस से प्रार्थना करो मुझे माफ कर दो मैंने पाप किया है। चाहे तो तुम मुझे कितना भी कष्ट दो लेकिन इस मासूम बच्चे का जीवन मत बिगाड़े हमारा कोई भी बच्चा नहीं है हम इसे गोद क्यों ना ले ले। उसका हृदय बड़ा कोमल है वह मान जाएगी। फिर बच्चा मेरे पास ही रहेगा.... आह,।
धर्मेंद्र की हवेली आ गई। मोहन खड़ा होकर आहटें लेने लगा उसकी आंखों में सामने एक तस्वीर खींच गई। मैं अपने घर के बरामदे में बैठा हुआ अखबार पढ़ रहा है लंबी नाक वाला एक छोटा सा बालक उसके गाउन मैं फूदनो से खेल रहा है। लेकिन उसके साथ ही उसके दिमाग में कई और चित्र उभरे। उसके सहयोगी यह समाचार सुनकर एक दूसरे को आंख मार रहे हैं, न्यायाधीश उसकी पसलियों में अपनी उंगलियां घुसा कर ठहाके मार रहा है। आत्मा के धिक्कार के साथ साथ उसे अपने दिल में किसी स्नेहिल कोमल और दुखी भावना का भी आभास हुआ।
मोहन ने भरी संभाल के साथ बच्चे को उस मकान के दरवाजे के बाहर सीढ़ी पर लिटा दिया। उसने हाथ हिला कर विदा ली साथिया आंसू उसके गालों पर बहने लगे।
मुझे माफ करना मेरे बच्चे मैं बहुत कमीना हूं। मोहन बड़बड़ाया मेरे प्रति अपने मन में कोई बुरी बात मत लाना। वह पीछे हटा लेकिन तुरंत ही उसने अपना गला साफ किया और निश्चयपूर्वक कहा देखा जाएगा जो होगा मैं अपने बच्चे को घर ले जाऊंगा लोग कुछ भी कहते रहे। मोहन ने बच्चे को फिर उठा लिया और तेजी से अपने घर की ओर कदम बढ़ाएं। जिसके जी में जो आए कहता रहे मुझे अब कुछ परवाह नहीं है मैं अब सीधा अपनी पत्नी के पास जाऊंगा और घुटनों के बल गिर कर कहूंगा, वह सब कुछ समझ जाएगी हम दोनों मिलकर इसे पा लेंगे अगर यह लड़का हुआ तो हम इसका नाम राहुल रखेंगे और लड़की हुई तो अंजलि जो भी हो बड़ा होकर बच्चा हमें सुख ही देगा।
और उसने वही किया जिसका उसने निश्चय किया था। रोता हुआ डर व शर्म से लगभग बेहोश और आशा से पुलकित वह अपनी कोठी में पहुंचकर सीधा अपनी पत्नी के पास गया
घुटनों के बल गिर कर बच्चे को अपनी पत्नी के कदमों में रख कर और सूबकिया लेकर मैं बोला, मुझे सजा देने से पहले पूरी बात सुन लो मैंने पाप किया है यह बच्चा मेरा है तुम्हें हमारी आशा नौकरानी की याद है ना? वासना के बस में हो कर ही.....'
और फिर डर और शर्म के नशे में वह अपनी पत्नी का जवाब सुने बिना ही बाहर चला आया मानो किसी ने उसे मारा हो। मैं ही बाहर रहूंगा जब तक की वह मुझे अंदर ना बुलाए, मोहन ने सोचा मैं इस से मेरी पत्नी को संभलने और सोचने का मौका मिलेगा।
तभी अपने हाथों में डंडा लिए उसका नौकर राजू उधर से गुजरा। अपने मालिक को सीढ़ियों पर बैठे देखे हुए उसने कंधे मटकाए, 1 मिनट बाद वह फिर उधर से निकला और फिर कंधे मटकाया।
अजीब बात है पहले ऐसा कभी नहीं सुना राजू हंसते हुए बड़बड़ाया। अभी अभी धोबन यहां थी वह अपना बच्चा यहां बाहर सीढ़ियों पर रखकर मेरे साथ अंदर चौक में गई। इतने में कोई बच्चा को उठाकर ले गया किसे ख्याल था की ऐसा भी हो सकता है।
क्या? क्या बक रहा है? मोहन ने अपना पूरा दम लगा कर पूछा. अपने मालिक की गुस्से का कुछ और मतलब लगाकर राजू ने कहा"मालिक, इस बार माफ कर दीजिए गर्मी की छुट्टियां हैं.... औरत के बिना...... औरत के बिना..... मेरा मतलब है......?"यह देख कर की मालिक की आंखें अभी गुस्से से घूर रही है राजू ने अपराधियों की भांति अपना गला खखारा और कैसा रहा, यह बुरी बात है पाप है लेकिन किया भी किया जाए। आपने बाहरी औरतों को को घर में लाने को मना जो किया है लेकिन यहां अब अपना है कौन? जब आशा यहां थी तो मैं किसी भी बाहरी औरत को यहां नहीं आने देता था। आप खुद ही जानते हैं मैंने तब किसी और को बुलाया हो,,, आशा तू अपनी ही के बराबर थी,,,,,, उसकी बात और थी उसमें कोई बुराई नहीं थी क्योंकि...... क्योंकि......?
चल भाग कमीनी मोहन चीख पड़ा। पाव पटकते हुआ वह अपने कमरे में चला गया। उसकी पत्नी अभी तक चकित और क्रोधित बैठी थी-पहले की ही तरह. उस की आंसू भरी आंखें हैं जमीन पर पड़े बच्चे पर जमी थी।
मोहन का चेहरा पीला पड़ चुका था। अपने होठों पर मुस्कान लाने की कोशिश करता हुआ वह बोला, बस बस यह तो मैं मजाक किया था। हूं यह मेरा बच्चा नहीं है-धोबन का है. मैं...... मैं तो मजाक कर रहा था..... जाओ इसे राजू को दे आओ."
मोहन जब से से वापस अपनी कोठी पर पहुंचा दो ठीक 10:00 बजे रहे थे। चांद का एक छोटा टुकड़ा बादलों की ओट से झांक रहा था। परेशानी के कारण वह अपने आपको थका हुआ अनुभव कर रहा था इसीलिए दरवाजे के बाहर की सीढ़ियों पर आराम करने के लिए बैठ गया। गली में और कोठियों के आसपास कोई भी दिखाई नहीं दे रहा था। गर्मियां बिताने के लिए आए हुए बूढ़े अब तक सो गए थे या सोने की तैयारी में थी। नौजवान अभी तक पहाड़ियों में घूम रहे थे।
सिगरेट जलाने के विचार से माचिस के लिए उसने अपने दोनों जेबों को टटोला तो उसकी दाहिनी कोहनी किसी कोमल वस्तु से टकराई। इधर निगाह घुमाते ही उसका चेहरा आतंक से सिकुड़ गया मानो उसने अपनी और बढ़ा हुआ कोई जहरीला सांप देख लिया हो। दरवाजे के बिल्कुल बाहर एक बंडल पड़ा हुआ था। मोहन ने उसमें अपना हाथ डाला तो कोई गिलगिली और सजीव चीज मालूम पड़ी। वह घबरा कर खड़ा हो गया और चारों ओर ऐसे देखने लगा मानो कोई कैदी अपने वार्डनों की निगाह से बच कर भाग निकलना चाहता हो।
आखिर में बच्चा छोड़ ही गई, अपने दांत भींच कर, मुठिया तानकर वह किचकिचया" यह पड़ा है मेरा पाप"हे भगवान।
भय, क्रोध और शर्म से वह सुन्न हो गया,,,, अब वह क्या करें? अगर उसकी पत्नी को मालूम हो गया तो है क्या कहेगी? न्यायालय मैं उसके सहयोगी क्या कहेंगे? न्यायाधीश भी उसकी पसलियों में अपनी उंगली घुसा कर हंसेगा और कहेगा:"बधाई है! तुम्हारी दाढ़ी सफेद हो गई तो क्या, दिल तो अभी जवान है! मोहन तुम तो पूरे घाघ हो!"
गर्मियों में छुट्टियां बिताने आए हुए सभी लोगों को इस बात का पता चल जाएगा। शरीफ घरानों के किवार उसके लिए बंद हो जाएंगे। ऐसी घटनाओं के समाचार अखबार वाले भी बड़ी मुस्तैदी से छाप देते हैं। बेचारे मोहन के नाम पर सारा समाज थू थू करेगा।
कोठी के बीच वाली खिड़की खुली थी। खाने की कमरे से उसकी पत्नी के खाना परोसने की आहट आ रही थी। सुरेश कोठी के पास वाले ही चौक में गिटार पर एक दर्द भरा गीत बजा रहा था। बच्चा किसी भी छन जा कर रोना शुरु कर देगा और सारा भेद खुल जाएगा। मोहन ने सोचा कि उसे अभी कुछ करना चाहिए।
जल्दी जल्दी वह बड़बड़ाया इसी वक्त किसी के देखने से पहले मैं इसे यहां से उठाकर ले जाऊंगा और किसी के दरवाजे के बाहर छोड़ आऊंगा। मोहन ने बच्चा अपने हाथ में उठाया और आहिस्ता आहिस्ता बिना किसी तरह की आहट की गली में निकल आया।
अजीब मुसीबत है, लापरवाही का नाटक करने की कोशिश करता हुआ मैं सोच रहा था, न्यायाधीश का सलाहकार गली में एक बच्चे को हाथों में उठाए! खुदा खैर करे! अगर कोई मुझे इस तरह देख ले और सारी बात भांप जाए तो,,,, इसे इसी दरवाजे के बाहर क्यों ना रख दूं,,,, नहीं ठहरो खिड़कियां खुली है शायद कोई देख रहा हो। कहां रखूं? आह, ठीक! अब समझ में आ गया मैं इसे व्यापारी धर्मेंद्र के घर के बाहर रखूंगा. व्यापारी धनी होते हैं और दिल की अच्छी हो सकता है वह इस बच्चे को पाकर मन ही मन खुश हो और इसे पाल ले।
मोहन ने आखिरकार बच्चे को धर्मेंद्र के घर के बाहर छोड़ने का निश्चय कर ही लिया, हालांकि धर्मेंद्र का मकान शहर के दूसरे नुक्कड़ पर नदी की तरफ था।
रास्ते में वह सोचता जा रहा था कहीं यह रोना मचलना शुरू न कर दे अजीब मुसीबत है। और मुझे देखो एक बच्चे को मैं इस तरह उठाए लिए जा रहा हूं जैसे हैंडबैग हो। हूं! बच्चा, जीवित औरों की तरह ही जिसकी भावनाएं हैं...... अगर सौभाग्य से धर्मेंद्र इसे गोदी ले ले तब तो इसकी भाग्य जाग जाएंगे, कुछ ना कुछ बन कर रहेगा..... हो सकता है यह प्रोफेसर बन जाए या कोई सेनापति या फिर कोई बड़ा लेखक..... कुछ भी हो सकता है। अब तो मैं इसे अपनी बगल में थैले की तरह दबोचे हुए चल रहा हूं, और 30-40 साल बाद हो सकता है इसके सामने बैठने की हिम्मत भी मुझे ना हो सके,,,,।
एक तंग और सुनसान गली में, जहां अंधेरों में दोनों तरफ लगे हुए नींबू के ऊंचे ऊंचे पेड़ और भी काले लग रहे थे मोहन को लगा की वह एक बहुत ही बुरा और निर्दय काम करने जा रहे हैं।
यह कितनी नीचता है! उसने सोचा, इससे ज्यादा निष्काम की कल्पना नहीं की जा सकती.... आखिर क्यों हम इस बच्चे को दर-दर की ठोकरें खिला रहे हैं? इस ने जन्म लिया है तो इसमें उसका कोई कसूर नहीं है. इसमें हमारा कुछ नहीं बिगाड़ रहा हम कितने दुष्ट हैं... हमारा तो थोड़ी सी देर का मजा हो जाता है। और भोले भाले बच्चे को सजा भुगतनी पड़ती है। इतनी निर्दयता कसूर कसूर मैंने किया है और मैं ही इसे सजा दे रहा हूं। अगर मैं इसे धर्मेंद्र के घर के बाहर छोड़ दूं तो वह इसे अनाथालय में भिजवा देगा। वहां अजनबियों के बीच तरह-तरह की मुसीबते सह कर यह पलेगा-ना प्यार, ना लाड़, ना दुलार.... और फिर यह किसी मोची के यहां काम सीखने के लिए लगा दिया जाएगा। यह शराब पिएगा भद्दी भद्दी गालियां देगा, भूखो मरेगा मोची, मेरा न्यायाधीश के सलाहकार का ऊंचे खानदान का बच्चा और मोची......! मेरे अपने शरीर का टुकड़ा......!
अब तक मोहन नींबू के घने पेडों वाली गली से बाहर आ गया था। चांदनी में आकर उसने बच्चे की कपड़े को थोड़ा सा हटाया और बच्चे को देखने लगा।
सोया हुआ है, मोहन बड़बड़ाया, शैतान, अपने बाप की तरह तेरी भी लंबी सी नाक है,,,, क्या आराम से सोया है लाटसाहब इतना भी नहीं पता की इनका बाप इन्हें देख रहा है। मेरे बच्चे यह नाटक है जीवन का नाटक। मुझे माफ कर देना, बच्चे तुम्हारी तकदीर में यही था।
मोहन की आंखें डबडबा आई और गले में कुछ अटका। उसने बच्चे को एक बार फिर से अच्छी तरह लपेटा और अपनी बगल में दबा लिया। धर्मेंद्र की हवेली तक रास्ते में तरह तरह के सामाजिक प्रश्न उसके दिमाग में घूमते रहे और उसकी आत्मा उसे धिक्कारती रही।
अगर मैं शरीफ और ईमानदार आदमी हूं तो मुझे चाहिए कि मैं इस बच्चे को लेकर अपनी पत्नी के पास जाओ और घुटनों के बल झुककर उस से प्रार्थना करो मुझे माफ कर दो मैंने पाप किया है। चाहे तो तुम मुझे कितना भी कष्ट दो लेकिन इस मासूम बच्चे का जीवन मत बिगाड़े हमारा कोई भी बच्चा नहीं है हम इसे गोद क्यों ना ले ले। उसका हृदय बड़ा कोमल है वह मान जाएगी। फिर बच्चा मेरे पास ही रहेगा.... आह,।
धर्मेंद्र की हवेली आ गई। मोहन खड़ा होकर आहटें लेने लगा उसकी आंखों में सामने एक तस्वीर खींच गई। मैं अपने घर के बरामदे में बैठा हुआ अखबार पढ़ रहा है लंबी नाक वाला एक छोटा सा बालक उसके गाउन मैं फूदनो से खेल रहा है। लेकिन उसके साथ ही उसके दिमाग में कई और चित्र उभरे। उसके सहयोगी यह समाचार सुनकर एक दूसरे को आंख मार रहे हैं, न्यायाधीश उसकी पसलियों में अपनी उंगलियां घुसा कर ठहाके मार रहा है। आत्मा के धिक्कार के साथ साथ उसे अपने दिल में किसी स्नेहिल कोमल और दुखी भावना का भी आभास हुआ।
मोहन ने भरी संभाल के साथ बच्चे को उस मकान के दरवाजे के बाहर सीढ़ी पर लिटा दिया। उसने हाथ हिला कर विदा ली साथिया आंसू उसके गालों पर बहने लगे।
मुझे माफ करना मेरे बच्चे मैं बहुत कमीना हूं। मोहन बड़बड़ाया मेरे प्रति अपने मन में कोई बुरी बात मत लाना। वह पीछे हटा लेकिन तुरंत ही उसने अपना गला साफ किया और निश्चयपूर्वक कहा देखा जाएगा जो होगा मैं अपने बच्चे को घर ले जाऊंगा लोग कुछ भी कहते रहे। मोहन ने बच्चे को फिर उठा लिया और तेजी से अपने घर की ओर कदम बढ़ाएं। जिसके जी में जो आए कहता रहे मुझे अब कुछ परवाह नहीं है मैं अब सीधा अपनी पत्नी के पास जाऊंगा और घुटनों के बल गिर कर कहूंगा, वह सब कुछ समझ जाएगी हम दोनों मिलकर इसे पा लेंगे अगर यह लड़का हुआ तो हम इसका नाम राहुल रखेंगे और लड़की हुई तो अंजलि जो भी हो बड़ा होकर बच्चा हमें सुख ही देगा।
और उसने वही किया जिसका उसने निश्चय किया था। रोता हुआ डर व शर्म से लगभग बेहोश और आशा से पुलकित वह अपनी कोठी में पहुंचकर सीधा अपनी पत्नी के पास गया
घुटनों के बल गिर कर बच्चे को अपनी पत्नी के कदमों में रख कर और सूबकिया लेकर मैं बोला, मुझे सजा देने से पहले पूरी बात सुन लो मैंने पाप किया है यह बच्चा मेरा है तुम्हें हमारी आशा नौकरानी की याद है ना? वासना के बस में हो कर ही.....'
और फिर डर और शर्म के नशे में वह अपनी पत्नी का जवाब सुने बिना ही बाहर चला आया मानो किसी ने उसे मारा हो। मैं ही बाहर रहूंगा जब तक की वह मुझे अंदर ना बुलाए, मोहन ने सोचा मैं इस से मेरी पत्नी को संभलने और सोचने का मौका मिलेगा।
तभी अपने हाथों में डंडा लिए उसका नौकर राजू उधर से गुजरा। अपने मालिक को सीढ़ियों पर बैठे देखे हुए उसने कंधे मटकाए, 1 मिनट बाद वह फिर उधर से निकला और फिर कंधे मटकाया।
अजीब बात है पहले ऐसा कभी नहीं सुना राजू हंसते हुए बड़बड़ाया। अभी अभी धोबन यहां थी वह अपना बच्चा यहां बाहर सीढ़ियों पर रखकर मेरे साथ अंदर चौक में गई। इतने में कोई बच्चा को उठाकर ले गया किसे ख्याल था की ऐसा भी हो सकता है।
क्या? क्या बक रहा है? मोहन ने अपना पूरा दम लगा कर पूछा. अपने मालिक की गुस्से का कुछ और मतलब लगाकर राजू ने कहा"मालिक, इस बार माफ कर दीजिए गर्मी की छुट्टियां हैं.... औरत के बिना...... औरत के बिना..... मेरा मतलब है......?"यह देख कर की मालिक की आंखें अभी गुस्से से घूर रही है राजू ने अपराधियों की भांति अपना गला खखारा और कैसा रहा, यह बुरी बात है पाप है लेकिन किया भी किया जाए। आपने बाहरी औरतों को को घर में लाने को मना जो किया है लेकिन यहां अब अपना है कौन? जब आशा यहां थी तो मैं किसी भी बाहरी औरत को यहां नहीं आने देता था। आप खुद ही जानते हैं मैंने तब किसी और को बुलाया हो,,, आशा तू अपनी ही के बराबर थी,,,,,, उसकी बात और थी उसमें कोई बुराई नहीं थी क्योंकि...... क्योंकि......?
चल भाग कमीनी मोहन चीख पड़ा। पाव पटकते हुआ वह अपने कमरे में चला गया। उसकी पत्नी अभी तक चकित और क्रोधित बैठी थी-पहले की ही तरह. उस की आंसू भरी आंखें हैं जमीन पर पड़े बच्चे पर जमी थी।
मोहन का चेहरा पीला पड़ चुका था। अपने होठों पर मुस्कान लाने की कोशिश करता हुआ वह बोला, बस बस यह तो मैं मजाक किया था। हूं यह मेरा बच्चा नहीं है-धोबन का है. मैं...... मैं तो मजाक कर रहा था..... जाओ इसे राजू को दे आओ."
अच्छे का अच्छा और बुरे का बुरा परिणाम होता है।कहानी अपने आप मे एक उदाहरण है।
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