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प्राचीन भारतीय इतिहास जानने के स्रोत


प्राचीन भारतीय  इतिहास के स्रोत

नमस्ते दोस्तों आज  मै  आप सब को प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत के बारे में बताऊंगी 
स्रोत इस प्रकार है 


.साहित्यिक स्रोत

धार्मिक साहित्य -धार्मिक साहित्य में हिन्दू ,बौद्ध और जैन धर्म ग्रन्थ शामिल है  | 

1.हिन्दू धर्म ग्रन्थ -हिन्दू धर्म ग्रन्थ के अंतर्गत प्रमुख स्थान सहिताओं का है जिनमे चार वेद -ऋग्वेद ,सामवेद ,यजुर्वेद,अथर्ववेद शामिल है। इनके अलावा ब्राह्मण (एतरेय ,शतपथ ,पंचविंश आदि ),उपनिषद आरण्यक ,वेदांग या उपवेद (शिक्षा ,क्लप ,व्याकरण आदि -कुल छः )उपवेद (आयुर्वेद ,धनुर्वेद आदि ),सूत्र ग्रन्थ (धर्म सूत्र ,गृहसूत्र आदि )स्मृति ग्रन्थ (मनु -स्मृति ,नारद स्मृति, गौतम स्मृति,बृहस्पति स्मृति आदि )पुराण (विष्णु पुराण ,मत्स्य पुराण वायु पुराण आदि -कुल १८ )और गाथा ग्रन्थ (रामायण और महाभारत )प्रमुख ग्रन्थ है। इनसे हमे वैदिक काल और उसके बाद के समय के राजनैतिक और तात्कालिक सभ्यता और संस्कृति का ज्ञान प्राप्त होता है। 
ऋग्वेद से हमे पूर्व -वैदिक काल की सभ्यता का पता चलता हैं जबकि अन्य तीनो वेदो से उत्तर -वैदिक काल की सभ्यता का पता चलता है। ब्राह्मण -ग्रंथो से हमे उत्तर वैदिक काल में आर्यों के विस्तार ,धार्मिक विस्वास तथा  कर्म कांड के बारे में पता चलता है। उपनिषदो से हमें आर्यो के दार्शनिक विचारों जैसे आत्मा ,ईश्वर ,आत्मा के आवागमन का सिद्धांत आदि का ज्ञान होता है। सूत्र -ग्रंथो में यज्ञ सम्बन्धी नियमो ,मनुष्य के लौकिक व पारलौकिक तथा धार्मिक ,समाजिक ,राजनितिक कर्तव्यो का उल्लेख मिलता है। स्मृतियों से हमे 300 ईस्वी से 600 ईस्वी तक के धार्मिक और समाजिक परिस्थितियों का ज्ञान होता है। पुराण ज्यादातर महाभारत क्र युद्ध के बाद जिन राजवशों से ईस्वा की छठी शताब्दी तक भारत के विभिन्न भागो मई राज किया उनके बारे में ज्ञान होता है। रामायण और महाभारत से हमे उत्तर वैदिक काल के आर्यो के जीवन के बारे में पता चलता है। 

2.बौद्ध धर्म ग्रंथ -पिटक आदी बौद्ध ग्रंथों को  पुकारा गया है यह तीन है 1, विनयपिटक जिसमें बौद्ध संघ के संगठन और उसके संबंधित नियमों का उल्लेख है 2,सुत्तपिटक जिसमें बौद्ध धर्म के उपदेशों का वर्णन है 3,अभिधम्मपिटक, जिसमें बौद्ध  दर्शन का विवेचन है। इन तीनों को सम्मिलित रुप से त्रिपिटक पुकारा गया है। बाद में महात्मा बुद्ध के पूर्व जीवन से संबंधित जातक कथाओं का निर्माण उसका जिनकी संख्या 549 है। इनके अतिरिक्त बौद्ध धर्म की महायान और तांत्रिक  शाखाओं में भी विभिन्न धार्मिक ग्रंथों की रचना की। जातकों से हमें सामाजिक-आर्थिक धार्मिक और राजनीतिक दशा का पता चलता है यद्यपि यह मूल रूप से बुद्ध के पूर्व जन्म की कथा से संबंधित है। अन्य बौद्ध ग्रंथों में दीपवंश, महावंश, मिलिंन्दपन्ह, दिव्यावदान मंजूश्रीमूलकल्प, ललित- विस्तार आदि ग्रंथों का महत्व है। दीपवंश महावंश तथा मंजूश्रीमूलकल्प से पूर्व मौर्य काल से हर्ष काल तक की और ललित से तत्कालीन भारत की जानकारी मिलती है।
 3. जैन धर्म ग्रंथ - आदि जैन ग्रंथों को 'आगम' पुकारा गया। बाद में उनका संकलन 'पूर्व' नामक 14 ग्रंथों में किया गया और उसके पश्चात उनका संकलन 'अंग' नामक 12 ग्रंथों में हुआ जिनमें से एक खो चुका है। 'भद्रबाहुचरित' से हमें चंद्रगुप्त मौर्य के काल की कुछ घटनाओं को जाने का अवसर मिलता है। बाद के समय के ग्रंथों में सबसे महत्वपूर्ण 'परिशिष्ट पर्व' है जिसकी रचना 12 वीं सदी में की गई।

धर्मनिरपेक्ष साहित्य

1 धर्मनिरपेक्ष साहित्य में विदेशियों के वर्णन अथवा यात्रा विवरण
2 जीवन चरित्र और ऐतिहासिक ग्रंथ
3 जन साहित्य सम्मिलित हैं
 विदेशियों के विवरण और यात्रा विवरण में यूनानी चीनी और मुसलमान लेखक प्रमुख हैं। यूनानी लेखकों में स्काईलेक्स, जस्टिन, हिरोडोटस, कर्टियस, डायोड ओरस, स्ट्रेबो, एलियन,और टाल्मी प्रमुख हैं ।     परंतु सर्वाधिक महत्वपूर्ण यूनानी व्यक्ति मेगस्थनीज था जिसे सिकंदर महान के पूर्वी साम्राज्य के उत्तराधिकारी  सेल्यूकस ने चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में राजदूत बनाकर भेजा था और जिसने अपनी पुस्तक इंडिका में तत्कालीन भारत के बारे में बहुत कुछ लिखा। चीनी यात्रियों में से गुप्तकाल में आया यात्री फाहियान, सम्राट हर्ष के समय में आया हुआ यात्री युवान च्वांग और सातवीं शताब्दी ईस्वी के अंत में आने वाला यात्री इत्सिंग प्रमुख है। मुसलमान यात्रियों में सुलेमान मसूदी और अलबरूनी जिसने (तहकीक-ए- हिंद) लिखा प्रमुख माने गए हैं।
 समकालीन जीवन चरित्र में उस समय के इतिहास को जानने में अमूल्य सहायता प्रदान करते हैं। इनमें बाणभट्ट का हर्ष चरित्र, विल्हन का विक्रम देव चरित, पदमा गुप्त का नवसाहसांग चरित्र, बल्लाल का भोज प्रबंध, संध्याकार नन्दी का राम चरित, हेमचंद्र का कुमारपाल चरित्र, नयचंद्र का हम्मीर काव्य, चंद्रबरदाई का पृथ्वीराज विजय, ऐतिहासिक ग्रंथों में कल्हण की राजतरंगिणी प्रमुख ग्रंथ है जिसमें कश्मीर के इतिहास का वर्णन है। तमिल भाषा में लिखे गए विभिन्न ग्रंथ मुख्यता संगम साहित्य दक्षिण भारत के इतिहास पर प्रकाश डालते हैं।
 जन साहित्य जिसका निर्माण विभिन्न विद्वानों ने साहित्य, अर्थव्यवस्था ,राज व्यवस्था ,नाटक, काव्य संग्रह ,व्याकरण और अन्य ज्ञान के विकास अथवा पूर्ति के लिए किया इतिहास को जानने में सहायक हुआ। कौटिल्य का अर्थशास्त्र ,पतंजलि का महाभाष्य, विशाखा दत्त का मुद्राराक्षस, पाणिनि का व्याकरण ग्रंथ, और अष्टाध्यायी, वात्स्यायन का कामसूत्र, सम्राट हर्षवर्धन के द्वारा लिखे गए प्रियदर्शिका ,रत्नावली और नागानंद नामक नाटक तथा महाकवि कालिदास और विद्वान भवभूति के विभिन्न ग्रंथ आदि इनमें प्रमुख हैं।

 पुरातात्विक स्रोत

 1- अभिलेख- प्राचीन भारत का इतिहास जानने के लिए अभिलेख सबसे अधिक महत्वपूर्ण और विश्वसनीय साधन है। यह लेख  प्रायः  स्तम्भों,  शिलाओं, गुहाओं  पर मिलते है। परंतु कभी-कभी मूर्तियों पात्रों तथा ताम्रपात्र पर भी अंकित मिलते हैं। देसी अभिलेखों में अशोक के अभिलेख ,प्रियाग का स्तंम्भ लेख, हाथी गुफा की अभिलेख सबसे अधिक प्रसिद्ध है। अशोक के लेखों से उसके धर्म तथा शिक्षाओं का परिचय मिलता है। प्रयाग लेख समुद्रगुप्त की दिग्विजय का लेखा जोखा है तथा हाथी गुफा का लेख खारवेल के शासनकाल के इतिहास का। विदेशी अभिलेखों में  एशियामाइनर के बोगाजकाॅय का अपना महत्व है। इसके अलावा पर्सिपोलिस  तथा नक्शे रुस्तम के अभिलेखों से प्राचीन भारत के तथा ईरान के  पारस्परिक संबंधों पर प्रकाश पड़ता है।
2- मुद्रा- प्राचीन भारतीय इतिहास के निर्माण में मुद्राओं ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वास्तव में 206 ई0 पूर्व से 300 ईसवी तक का भारतीय इतिहास जानने के प्रधान साधन मुद्रायें ही हैं। मुद्राएं प्रायः सोने, चांदी तांबे, अथवा मिश्रित धातु की मिलती है। इन कारणों से यह महत्वपूर्ण है
,1- आर्थिक स्थिति पर प्रकाश डालती हैं।
2- तिथि क्रम का निर्धारण करती हैं
3- आर्थिक स्थिति का ज्ञान कराती हैं
4- कला पर प्रकाश डालती हैं
5- साम्राज्य की सीमाओं का निर्धारण करती हैं
6- शासकों की व्यक्तिगत रुचियों की जानकारी देती हैं
7- नवीन तथ्यों को  प्रकाश में लाती हैं
8- हमारे विदेशी संबंधों पर प्रकाश डालती हैं।
3- स्मारक- प्राचीन स्मारक राजनीतिक दशा पर तो विशेष प्रकाश नहीं डालते परंतु सांस्कृतिक पर बहुत प्रकाश डालते हैं। मूर्तियों और मंदिरों के अध्ययन से लोगों के धार्मिक विचारों तथा विश्वास का पता लगता है। मूर्तियों और चित्रों के अध्ययन से में सामाजिक दशा का भी पता लग जाता है, क्योंकि हमें लोगों की वेशभूषा अन्नों, वनस्पतियों आदि  का पता लग जाता है। स्थापत्य से तत्कालीन स्थापत्य शैली का पता चलता है  एंव यह भी पता चलता है उसमें कौन सी सामग्री का प्रयोग हुआ है। साथ ही स्थापत्य, मूर्ति और चित्र कला से लोगों की कलाप्रियता का भी पता चलता है।
4- कलाकृतियां और मिट्टी के बर्तन- विभिन्न स्थानों पर किए गए उत्खनन से मिट्टी की बनी हुई मूर्तियां व बर्तन प्राप्त हुए हैं। इन बर्तनों में मूर्तियों का भी अत्यधिक ऐतिहासिक महत्व है क्योंकि इनसे तत्कालीन लोककला धर्म व सामाजिक स्थिति पर प्रकाश पड़ता है। यह बर्तन है मूर्तियां विभिन्न रंगों के आकार में मिलते हैं।
5- उपकरण- उन्नीसवीं सदी के प्रारंभ में प्राचीन स्थलों की खुदाई व अन्वेषण प्रारंभ हुआ। 1861 में 'भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण' नामक संस्था स्थापित हुई। फिर उसका  पुनर्गठन हुआ। इस विभाग ने 1935 में कश्मीर तथा पाकिस्तान की सोहा घाटी में खनन कार्य कर प्रारंभिक पाषाण युग के उपकरण प्राप्त किए। 1950 के बाद दक्षिण भारत मध्य कठियावाड तथा दक्षिण पश्चिम राजस्थान में की गई खुदाई से भी पाषाण युग के बहुत से औजार मिले। भारत के मध्य क्षेत्र में तथा दक्खन  तथा दक्षिण भारत में पाषाण युग के औजार मिलते हैं वह प्रारंभिक पाषाण युग के औजारों से भिन्न है। वे आकार में छोटे हैं तथा अच्छे पत्थर के बने हैं। इतिहासकारों ने इन्हें मध्य पाषाण युग इन माना है। दक्षिण भारत के अनेक स्थानों में नवीन पाषाण युग के औजार उपलब्ध हुए हैं। पूर्व राजस्था ,मध्य भारत तथा दक्खन से घिसेेेे हुए पत्थर की कुल्हाड़ियां मिली हैं जो ईसा से 2000 वर्ष पूर्व की हैं।


 
 उपयुक्त सभी साधनो में प्राचीन भारतीय इतिहास के ज्ञान की वृद्धि में सहायता प्रदान की है और अब तक ईस्वी पूर्व 3000 वर्ष की भारतीय सभ्यता का ज्ञान हमें हो चुका है। इसमें केवल एक कमी है इसमें ईसा पूर्व छठी शताब्दी के आरंभ से पहले के राजनीतिक इतिहास का ज्ञान हमें नहीं हो सका और जो ज्ञान हमें है वह भी अधिकांशअनुमान पर आधारित है। जिसे हम इतिहास की संज्ञा नहीं दे सकते। ईस्वी पूर्व छठी शताब्दी के प्रारंभ से हमें राजनीतिक इतिहास का क्रम पता होना आरंभ हो जाता है और ऐसा बहुत कुछ प्राप्त हो जाता है जिसे हम इतिहास की संज्ञा दे सकते हैं। परंतु तब भी इस क्षेत्र में अभी काफी संभावनाएं हैं कि जिनके कारण हम यह कह सकते हैं कि प्राचीन भारत का इतिहास एक लंबे समय तक राजनीतिक इतिहास कम तथा सभ्यता और संस्कृति का इतिहास अधिक है।


बहुत-बहुत धन्यवाद 

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