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जनवरी, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भारत में वर्ण व्यवस्था का इतिहास

वर्ण व्यवस्था का इतिहास  उत्तर वैदिक काल में कई सामाजिक परिवर्तन हुए। समाज में विभाजन तीखा हो चला। वर्ण व्यवस्था सुदृढ़ हुई।  आश्रम व्यवस्था शुरू हुई। संयुक्त परिवार विघटित होने लगे, स्त्रियों की स्थिति में गिरावट आई। शिक्षा का विशिष्टीकरण हुआ। वर्ण व्यवस्था ऋग्वैदिक काल की वर्ग व्यवस्था वर्ण व्यवस्था में परिवर्तित हो गई। कुछ प्राचीन ग्रंथों में वर्ण व्यवस्था को ईश्वरीय माना गया है। ऋग्वेद के पुरुष सूक्त के अनुसार विराट पुरुष के मुख से ब्राह्मण, बाहुओं क्षत्रिय, जंघाओं से वैश्य और पैरों से शूद्र हुए। बाद में विराट पुरुष का स्थान ब्रह्मा ने ले लिया, परंतु इन वर्णों की उत्पत्ति का सिद्धांत वही रहा‌। कुछ वर्ण का अर्थ रंग से लेते हैं। इस आधार पर तो प्रारंभ में केवल दो ही वर्ण थे-े एक गोरे आर्यों का और दूसरा काले अनार्यों का। 2 फिर 4 वर्ण  कैसे बने वर्ण का अर्थ वरण करना या चुनना भी है। इस अर्थ के आधार पर कहा गया है कि जिस व्यक्ति ने जो धंधा चुन लिया उसके अनुसार उसका वर्ण निर्धारित हो गया। यही मत उचित प्रतीत होता है। प्राचीन दर्शन तथा धर्म ग्रंथों में अनगिनत बार उल्

भगवान शिव के वाहन नंदी की उत्पत्ति की कथा

नंदी जी उत्पत्ति की कथा पुराणों में उल्लेख मिलता है कि शिलाद मुनि के ब्रह्मचारी हो जाने के कारण वंश समाप्त होता देख उनके पूर्वजों ने उनसे अपनी चिंता व्यक्त की शिलाद मुनि निरंतर योग तप आदि मैं व्यस्त रहने के कारण गृहस्थ आश्रम नहीं अपनाना चाहते थे। अतः उन्होंने संतान की कामना से इंद्र देव को तप से प्रसन्न कर जन्म और मृत्यु से हीन पुत्र का वरदान मांगा। इंद्र ने इस में असमर्थता प्रकट की तथा भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कहा। तब शिलाद मुनि ने कठोर तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया और उनके ही सामान दिव्य और मृत्यु हीन पुत्र की मांग की। अतः भगवान शिव ने स्वयं उनके पुत्र के रूप में प्रकट होने का वरदान दिया। अतः एक दिन भूमि जोतते समय शीलाद को एक बालक मिला। शिलाद ने उसका नाम नंदी रखा। उसको बड़ा होते देख भगवान शंकर ने मित्र और वरुण नाम के दो मुनि शिलाद के आश्रम में भेजें। जिन्होंने नंदी को देखकर भविष्यवाणी की की नंदी अल्पायु है। नंदी को जब यह ज्ञात हुआ तो वह महादेव की आराधना से मृत्यु को जीतने के लिए वन में चला गया। वन में उसने शिव का ध्यान आरंभ किया। भगवान शिव नंदी के तप से प्रसन्न ह

हिंदी कहानी-बुढापे की गलती

बुढ़ापे की गलती शाम की सैर के लिए निकले हुए न्यायाधीश के सलाहकार मोहन ने बिजली के एक खंभे का सहारा ले कर एक ठंडी सांस ली | एक सप्ताह पहले जब वह शाम की सैर से वापस आ रहा था तो ठीक उसी जगह उसकी पुरानी नौकरानी ने उसे रोक लिया था ,और धमकाते हुए कहा था  "ठहर जा पापी। मैं भी तुझे ऐसा पाठ पढ़ाऊंगी की तुम भोली भाली लड़कियों को खराब करना भूल जाएगा। मैं बच्चा तेरे दरवाजे पर छोड़ जाऊंगी, तुझ पर मुकदमा चलाऊंगी, और तेरी पत्नी को भी सब कुछ बता दूंगी। यही नहीं.......''और इस के साथ ही नौकरानी ने कहा कि तुम बैंक में उसके नाम 500000 रुपए  जमा कर दे। अब फिर मोहन को 1 सप्ताह पहले की यह घटना याद आ गई। उसने एक ठंडी सांस ली, और मन ही मन अपने आप को एक बार फिर उस क्षणिक वासना के लिए धिक्कारा, जिसके लिए अब उसे इतनी चिंता और परेशानी का सामना करना पड़ रहा था। मोहन जब से से वापस अपनी कोठी पर पहुंचा दो ठीक 10:00 बजे रहे थे। चांद का एक छोटा टुकड़ा बादलों की ओट से झांक रहा था। परेशानी के कारण वह अपने आपको थका हुआ अनुभव कर रहा था इसीलिए दरवाजे के बाहर की सीढ़ियों पर आराम करने के लिए बैठ गया। गली में